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मणिपुर हिंसा | मणिपुर गैंग रेप घटना

 मणिपुर गैंग रेप:- मैंने कभी इस राजनीतिक उठापटक पर टिप्पणी नहीं की। पर आज जब मणिपुर में ऐसी ह्रदय विदारक घटना के बारे में सुना तो मुझसे रहा नही गया । कोई किसी दल का समर्थक है तो कोई किसी परंतु कुछ चीजे ऐसी होती है जो इस दल के दलदल से बाहर होती है। मुझे लगता है की इस घटना को अगर सरकार ( सरकार का अर्थ यहां भारत सरकार तथा राज्य सरकार से है जो सत्ता में है ना कि किसी राजनीतिक दल से) नजर अंदाज कर देती है जैसा कि पिछले कई दिनों से मणिपुर की घटनाओं को किया जा रहा था तो फिर हमें ऐसे लोकतंत्र की कोई आवश्यकता ही नहीं है। मुझे लगता है कि आप सभी ने मणिपुर गैंग रेप वाला वीडियो देखा होगा । इनके मुस्कुराते चेहरे बता रहें है कि मुझे किसी का खौफ नहीं है। दरिंदगी का यदि कोई चरम होता है तो वो यही है। ऐसे लोगो के लिए मौत की सजा भी फीकी पड़ जायेगी। मेरा भारत सरकार तथा राज्य सरकार से अनुरोध है कि जल्द से जल्द इस घटना पर कार्यवाही कीजिए। एक निवेदन और है कि समिति गठित कर दिया हूं जांच चल रही है वाला भाषण मत दीजिएगा। Save manipur

मन की बात | man ki baat

 मन की बात:- जब आप चिल्ला रहे होते हैं तो सुनने वाले बहुत होते हैं पर मन की बात को सुनने वाला कोई नहीं होता है। कभी कभी आपके मन में बहुत सारे विचार एक साथ कौतोहल मचा रहे होते है पर कोई सुनने वाला नहीं होता है। मन में किसी बात को बहुत दिन तक दबाकर रखने से तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में लगता है जैसे सर पर कितना बड़ा बोझ रखा हुआ है। मन करता है कोई ऐसा मिले जिसके सामने मैं अपनी बातो को रख सकु। जीवन में कठिन परिस्थितियां और सरल परिस्थितियां दोनों होती है परंतु कठिन परिस्थितियों में मन टूट सा जाता है। और यह कठिन परिस्थिति और भी कठिन बन जाती हैं जब आपके जीवन में कोई ऐसा नहीं होता जिसके सामने आप पानी के धारा की तरह बह सकें। आप कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं,आपके अंदर विचारों की हिलोरे रह-रहकर उठते हैं परंतु उन बातों को समझने और उस पर उचित सुझाव देने वाला कोई नहीं होता है।              मन के हारे हार है,मन के जीते जीत यदि आप मन से हार चुके होते हैं तो फिर आपको इस संसार की कोई भी ताकत विजय नहीं दिला सकती परंतु यदि आप मन से जीत जाते हैं तो फिर संसार की कोई भी ताकत आपको हरा नहीं सकती है। स

मेरी यात्रा | happy holi | यादगार ट्रेन की मेरी यात्रा

 मेरी यात्रा:- होली आने वाली थी तो घर जाने के लिए मैंने दो महीने पहले ही स्लीपर क्लास ट्रेन टिकट बुक कर लिया। पैसा तो ज्यादा लगा पर उतना चलता है। बहुत दिनों बाद होली पर घर जाने का मौका मिला था। मेरे अंदर खुशी के गुब्बारे पहले से ही फूट रहे थे। ये दो महीना बीतने का नाम ही नहीं ले रहा था ऐसा लगता जैसे एक युग बीतने वाला है।  किसी तरह दो महीना बीत गया और वो दिन आ गया जब लोहपतगामिनी की सवारी करनी थी। सुबह से समझ नहीं आ रहा था कौन सा वस्त्र रखा जाए कौन सा नहीं। आखिर ये उलझन खत्म हुआ और बैग पैक हो गया। ट्रेन का समय नजदीक आ रहा था तो जल्दी जल्दी रूम लॉक किया और निकल गया दिल्ली मेट्रो की तरफ। शाम हो चुकी थी और ट्रेन का समय भी हो चुका था। मेट्रो में बैठे बैठे मन में उलझन के हिलोरे उठ रहे थे कि कहीं ट्रेन छूट न जाए। जैसे तैसे मैं स्टेशन पहुंच गया। भागते हुए प्लेटफार्म पहुंचा तो ट्रेन खड़ी हुई थी तब जाके मेरे मन को राहत मिली। जैसा कि मैं पहले बता चुका हूं कि मेरी सीट पहले से ही बुक थी तो मैं सीधे अपने सीट पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद अगल बगल के दृश्य पीछे जाने लगे और शरीर में कंपन होने लगा। अजनबी सा

महिला सशक्तिकरण|women empowerment| महिला सशक्तिकरण पर निबंध

महिला सशक्तिकरण का विकास:- वर्तमान समय में समाज की जो भी विशेषताएं है इसका रूप गढ़ने में बहुत वक्त लगा। प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में बहुत सारी परंपराएं एवं कुरीतियां व्याप्त थी परंतु समाज के अनुकूलन विशेषता के कारण परंपराओं में बदलाव आता गया। महिला सशक्तिकरण ऋग्वेदिक काल में जिस तरह से महिलाओं तथा निम्न जातियों की स्थिति सुधरी हुई अवस्था में थी वही उत्तर वैदिक काल में महिलाओं से वेद पढ़ने ,सभा करने तथा शूद्रों से भी जनेऊ धारण करने तथा वेदों के अध्ययन पर रोक लगा दी गई। जिसके फलस्वरूप समाज में एक विशेष तबके का प्रभुत्व स्थापित हो गया। महिलाओं के शोषण को रोकने तथा महिला सशक्तिकरण में अलग-अलग समाज सुधारको ने अपना योगदान दिया है प्राचीन काल से ही कुछ कुरीतियों का जन्म हुआ जो निम्न प्रकार है:- 1. सती प्रथा:-                  सती प्रथा भारतीय समाज में व्याप्त बहुत ही अमानवीय प्रथा थी। इसके अंतर्गत किसी भी महिला के पति की मृत्यु हो जाने पर उस महिला को भी उसके पति के साथ जला दिया जाता था। यदि महिला इसका विरोध करती तथा सती होने से इंकार करती तो उसे जबरन चिता पर बिठा दिया जाता था। राजा रा

आज का मौसम।ठंड का मौसम और चाय।aaj ka maosam

ठंड का मौसम और चाय:- आज का मौसम  जैसे तैसे दिसंबर का महीना खत्म हो चुका है अब जनवरी चल रहा है। मुझे लगा शायद कैलेंडर बदलने के साथ साथ मेरे जीवन में भी कुछ बदलाव आएगा परंतु ऐसा कुछ विशेष बदलाव देखने को मिल नहीं रहा। नया वर्ष प्रारंभ होने के बावजूद भी कुछ अलग सा नहीं लग रहा। ऐसा लग रहा है जैसे एक दिन पहले सोया था और एक दिन बाद सो कर उठा हूं। हां यदि मौसम में कुछ परिवर्तन दिसंबर और जनवरी के मध्य देखने को मिलता तो शायद नया वर्ष आने पर कुछ बदलाव दिखने की संभावना हो सकती थी किंतु ऐसा कुछ ना हुआ और ना ही भविष्य में होने की कोई संभावना दिख रही है। जैसी ठंडक और ठिठुरन दिसंबर के आखिरी दिनों में था वैसे ही ठंडक और ठिठुरन जनवरी के शुरुआती दिनों में भी है। जनवरी का महीना ठंडक का सावन होता है जिस प्रकार हम सावन महीने में झूलों के साथ दिनचर्या गुजारते हैं उसी प्रकार जनवरी के महीने में चाय और पकौड़े के साथ दिनचर्या गुजारते हैं।  चाय को हमारे यहां 'कलयुग का अमृत' कहा जाता है। चाय दिन की शुरुआत का सबसे बेहतरीन माध्यम है खासकर सर्दियों में। विदेशी संस्कृतियों में देखा गया है कि चाय का सेवन सोकर उ

कल्पनाओं की दुनिया कैसी होती है। Dreams

 कल्पनाओं की आवश्यकता अक्सर हम कल्पना में खोए रहते है और वर्तमान से कटा हुआ महसूस करते है। जब हम वर्तमान की जिंदगी से थक चुके होते हैं और तनाव से मन भारी हो जाता है ऐसी स्थिति में कल्पनाओं का सहारा लेना पड़ता है। हमें मालूम होता है कि कल्पना वास्तविकता में नहीं आ सकती परंतु फिर भी क्षणिक खुशी की प्राप्ति के लिए हम कल्पनाओं में डूब जाते हैं। कल्पनाओ में हम बंधा हुआ महसूस नहीं करते,हमारे दायरे भी निर्धारित नहीं होते है। हम जैसा चाहे जिस तरह चाहे खुद को बना सकते हैं। कल्पनाएं-- जब व्यक्ति खामोश किसी एकांत में बैठा रहता है उस समय उसके मस्तिष्क में बहुत सारे विचार चलते रहते हैं। उन्हीं विचारों के मध्य वह एक कल्पनाओं का संसार गढ़ने लगता है। उस व्यक्ति की ऐसी इच्छाएं जिसे वह पूरा नहीं कर सका उसे अपनी कल्पनाओं में पूरा करने की कोशिश में लगा रहता है। उसकी कल्पनाएं तो असीमित होती हैं वह उनमें डूब कर संसार की हर एक नायाब चीजों को हासिल कर लेना चाहता है। कल्पनाएं हर वक्त सकारात्मक ही नहीं होती कभी-कभी व्यक्ति के नकारात्मक भाव उसके कल्पनाओं में हावी हो जाते हैं। वह अपनी कल्पनाओं में उस व्यक्ति को भ

पिता का बच्चों के लिए प्रेम।father

पिता की पीठ की सवारी बचपन में पिता के पीठ पर जो सवारी करते थे वह किसी राजा के रथ की सवारी से कम नहीं था। वह पुराने दिन गुजर गए परंतु उनकी यादें हमारे जहन में अभी तक जिंदा है। वक्त गुजरता गया और यह सवारी वाली प्रथा खत्म होती चली गई ऐसा नहीं कि अब पिता के पास पीठ नहीं है और ऐसा नहीं है कि पिता अब घोड़ा बनना नहीं चाहता परंतु बेटे के पास अब इतना समय नहीं रहा कि वह मोबाइल फोन से बाहर निकल कर सवारी कर सकें। छोटी सी पैंट जो घुटनों तक होती है और आधी बाजू की टीशर्ट पहनकर मैं प्रतिदिन स्कूल जाता था। स्कूल जाते वक्त मेरे कपड़े चमकते रहते थे परंतु वापस आने पर धूल मिट्टी से नहाया हुआ होता था। अगर पिताजी तैयार होकर कहीं जाने वाले भी होते थे फिर भी धूल से लिपटे हुए मेरे शरीर की परवाह ना करते हुए मुझे अपनी गोद में उठा लेते थे। मैं तभी जिद करने लगता था मुझे सवारी करनी है। बिना किसी सवाल के बाबूजी घोड़ा बन जाते थे और मैं उनके पीठ पर बैठ जाता था और पूरे आंगन में चलने लगते थे। तबड़क तबड़क की आवाज करते हुए मैं जोर से चिल्लाने लगता था। जब मुझे सवारी का पूरा आनंद मिल जाता था तब मैं उनकी पीठ से नीचे उतरता और

गम की परिस्थिति में खुशियों की पहचान

 खुशी की तलाश में:- हर रोज की तरह आज भी घर में जोर शोर से हो रही लड़ाईयों की आवाज से मेरी नींद टूट गई यानी सुबह हो चुका था। यहां सुबह की पहचान सूरज की किरणों से नहीं तेज आवाजों से की जाती है। रोज की तरह दैनिक क्रिया का निपटान करके निकल पड़ा था जिंदगी की जद्दोजहद से जूझने। जहां भी जाओ हर तरफ गम के बादल ही दिखाई पड़ते हैं। हर इंसान खुद को गम के पिंजरे में कैद कर रखा है। अभी तो मेरी जिंदगी की शुरुआत हुई है और इन शुरुआती दौर में भी गम और तनाव मेरे पीछे पीछे परछाई की तरह चल रही है। यह एक ऐसी परछाई है जो प्रकाश के चले जाने के बाद भी मेरा साथ नहीं छोड़ती है। कभी-कभी सोचता हूं यदि यह खुशी की परछाई होती तो मैं कभी प्रकाश को बुझने ही ना देता। जिंदगी में जो उल्लास और कुछ कर गुजरने का जज्बा था वह भी अब धीरे-धीरे अपना दम तोड़ रहा था। इसे जिंदा रखने की हर कोशिश नाकाम लग रही थी। दूसरों से खुशी पाने की उम्मीद में मैं खुद की पहचान को भूलने लगा था। आंखें बंद हो या खुली चारों तरफ सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा था। इस संसार में सुखों की प्राप्ति के लिए हर किसी को रिझाने की कोशिश में लगा था। परंतु दूसरों म

जिंदगी एक अजब दास्तां|jindagi ek Ajeeb Dastan

 संघर्ष की कहानी - अपनी जिंदगी में आए दिन विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों को स्वीकार करना ही मानव सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। मानव जीवन कठिनाइयों से भरा होता है इसी वजह से हम मानव कहलाते हैं। बचपन के एक पुस्तक में हमने पढ़ा था मानव जब जोर लगाता है पत्थर पानी बन जाता है, हमारे पास ऐसी असीम शक्तियां उपलब्ध हैं जिसका उपयोग करके हर कठिनाइयों से लड़ा जा सकता है। प्रतिदिन के तनाव तथा काम के अधिक दबाव के कारण मस्तिष्क में उलझन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे पार पाना बेहद कठिन जान पड़ता है। ऐसी अवस्था में धैर्य और साहस को बनाए रखना बहुत ही मुश्किल का काम महसूस होता है। परंतु यदि यह जिंदगी हमें प्राप्त हुई है तो इसको यूं ही बर्बाद नहीं किया जा सकता। समस्याओं से पार पाना- हर समस्या का एक निवारण होता है। ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका निवारण मानव ना खोज सकें। उलझन की स्थिति में यह जरूरी है कि मस्तिष्क में बहते हुए विभिन्न विचारों को विराम दे दिया जाए तथा कुछ समय तक मस्तिष्क में एक भी विचार को ना आने दे। योग तथा ध्यान करने से मस्तिष्क को काफी हद तक स्वस्थ बनाया जा सकता

My father|मेरे पिता

 पिता का कर्तव्य:- अक्सर आपने सुना होगा लोग पिता को उसके कर्तव्य के बारे में बताते रहते हैं परंतु उसकी परिस्थिति को कोई नहीं समझता। पिता अपने अंदर हर गम को छुपा कर परिवार को खुश रखता है। यदि मां को कोई समस्या हो या किसी अवसाद से गुजर रही हूं तो वे अपना सारा दुख पति के आगे रख देती हैं और पति उसे स्वीकार कर लेता है। परंतु यदि पिता को कोई अवसाद या पीड़ा होती है तो वह अपनी बात को दिल में ही दबा कर रखता है और किसी से भी अपने दुखों को नहीं बांट पाता। 1).परिवार की जिम्मेदारी:- ऐसा नहीं है कि स्त्रियां घर के खर्चे में अपना योगदान नहीं देती परंतु अभी भी देश का एक बड़ा हिस्सा उस परिस्थिति से गुजर रहा है जहां पर परिवार की पूरी जिम्मेदारी एक पिता पर आ जाती है। उस घर में कमाने वाला सिर्फ एक और खर्च करने वाले अनेक होते हैं इससे परिस्थिति गंभीर बनी रहती है। घर में खानपान, पहनावा, इलाज, शिक्षा एवं अन्य चीजों की जिम्मेदारी पिता के माथे पर ही होती है। इन सभी जिम्मेदारियों से एक पिता मुंह नहीं मोड़ सकता। इन जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए पिता किन किन परिस्थितियों से गुजरता है यह समझना बहुत ही मुश्किल

History of love in future|भविष्य में प्रेम का इतिहास

22 वी सदी:- आज 22 वी सदी में यूं ही लोग प्रेम को स्वीकार नहीं कर रहे हैं इसके पीछे एक कठिन परिश्रम और त्याग छिपा हुआ है। हमारे पूर्वजों ने प्रेम को प्राप्त करने के लिए बहुत कठिन लड़ाइयां लड़ी। यह लड़ाइयां शारीरिक कम मानसिकता से ज्यादा थी। बीते कई दशकों पूर्व प्रेम करना समाज में एक अपराध माना जाता था। परंतु उस परिस्थिति में भी लोग प्रेम करना नहीं छोड़े। प्रेम पर किसी का प्रभाव नहीं होता यह बात 21वी सदी में ही कुछ लोगों ने सिद्ध कर दिया। प्रेम करने के बाद उन्होंने अपनी प्रेमिका को भी हासिल किया तथा अपने परिवार एवं समाज के सोच को भी प्रभावित किया। हमारे पूर्वज एवं हमारे आदर्श लैला मजनू जिन्होंने समाज में पत्थरों के मार भी खाए तथा समाज से बेदखल भी कर दिए गए परंतु प्रेम की राह को नहीं छोड़ा। दुनिया को प्रेम का प्रसंग बताते बताते खुद मिट्टी में लीन हो गए। आज उन्हें दुनिया याद करती है जब भी प्रेम की बात का जिक्र होता है तो उसमें लैला मजनू का जिक्र जरूर होगा। सिर्फ प्रेम से संबंधित एक ही कहानी नहीं है ऐसे बहुत सारे हमारे पूर्वज हैं जिन्होंने समाज की रूढ़ीवादी सोच को बदल कर प्रेम का पाठ पढ़ाया