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Hindi poem|संकल्प हमारा है

ठोकर जितनी लगेगी , हौसले उतने ही मजबूत होंगे, आज समय विपरीत है तो क्या, एक दिन यह कायनात भी मेरे होंगे। बंद है मेरी किस्मत, परिस्थिति के तहखाने में, कभी तो मिल ही जाएगी इसकी चाभी, अभी चालाकी इतनी भी नहीं जमाने में। डुबोना तुम चाहते थे पतवार मेरी, डूब तुम्हारा ईमान गया, मैं तो तिनके से भी तैर सकता था, मुझे डुबोते वक्त शायद यह भूल गया। मैं तो पथिक हूं ना रुकना जानता हूं, राहों में पड़े कांटो से लड़ना जानता हूं, यह हुनर मेरी कोई पैदाइशी नहीं, तुमने ही सिखाया है जो मैं चलना जानता हूं। जो ठान कर आए हो यहां, उसे पूरा करके ही सोना है, गर थक कर बैठ गए आज पथ पर, तो अपनी ना कामयाबी पर हर पल रोना है। Hindi poem|संकल्प हमारा है Hindi poem चर्चा:- उपरोक्त पंक्तियां दृढ़ निश्चय और  संकल्प की तरफ इशारा करते हैं। व्यक्ति जब अपने मन में कुछ ठान लेता है और वह अपने कार्य के प्रति ईमानदार हो जाता है तो उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है।। इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में रुकावटें और कठिनाइयां सभी के समक्ष आती हैं परंतु इन कठिनाइयों से डरना नहीं चाहिए बल्कि इनसे मुकाबला करना चाहिए जिससे तुम्हारे सफलता का म

Manavta ki hatya|मानवता की हत्या

था वह युग मानवता का, गज को गणेश बनाया था, सिद्ध किया मानव अस्तित्व को, पत्थर को पूज्य बनाया था। सतयुग,द्वापर, त्रेतायुग में, स्वार्थ मुक्त बलिदान था, खेलते थे भरत सिंह से, मानव जाति पर अभिमान था। आ गया है घोर कलयुग, प्रेम ,स्नेह का अंत हुआ, छल,कपट,चोरी,बेईमानी, मानव स्वभाव का अंग हुआ। क्या कसूर था उस नन्हीं जान का, जिसको कोख में है मार दिया, देख ना पाई चलन जहां का, मां का हृदय भी चीर दिया। मर गए हैं जमीर सबके, यह देख हृदय तड़पता है, छेद हुआ मानवता की जड़ में, छोड़ो, किसी को क्या फर्क पड़ता है। Manavta ki h चर्चा:- यह कविता केरल की घटना से प्रेरित होकर लिखी गई है। जिस प्रकार एक गर्भवती हथिनी की हत्या की गई यह  मानवता की हत्या ही कह लाएगी। मानव सभ्यता प्रकृति के साथ ही प्रारंभ हुई है और मानव को प्रकृति में जीव जंतुओं को भी हिस्सेदारी देनी पड़ेगी। मानव यदि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता है तो उसे इसकी सजा भुगतनी पड़ेगी। Manavta ki hatya उपरोक्त पंक्तियों में यह बताया गया है कि किस प्रकार मानव का स्वभाव था कि वह  हाथी को गणेश के समान मानता था परंतु अब केरल में उसी  हाथी की हत्या कर दी गई।

Kisan|रोपण के दिन

पंछी कूदे पल्लव पल्लव, कागा भी टेरी लगाए, भवन छोड़ निकली तितली सब, लगता रोपण के दिन आए। खेतन कामिनी लगी अकेले, रोपत धान मुस्काए, धोती जांघ बराबर बांधे, सावन गीत गुनगुनाए। बार-बार मराल के नयना, अबला को देखत जाए, हिला कपाल दाएं बाएं से, टोली हो रहा चिढ़ाए। मेंढक मेढ़ किनारे बैठा, टर टर की बांग लगाए, डर कर दुबकी मृगनयनी, फिर पति को रही बुलाए। रोपत धान दृश्य देखकर, मन गदगद हुई जाए, लगा  किसान नित्य खेतन में, उसका वही स्वर्ग कहलाए। Kisan ke Ropan ke din शब्दार्थ:- कामिनी-- स्त्री मराल--हंस पल्लव--पत्ता चर्चा:-kisan प्रस्तुत पंक्तियों में गांव के आषाढ़ महीने का वर्णन किया गया है। इस महीने में धान की रोपाई की जाती है। गांव में धान की रोपाई के लिए औरतों की टोली खेतों में काम करती है। पुरुष खेत को बराबर करने तथा रोपने योग्य बनाते हैं। उपरोक्त पंक्तियों में किस प्रकार एक अबला स्त्री खेत में धान की रोपाई करती है तथा उस समय का जो दृश्य है उसी का वर्णन किया गया है। धान की रोपाई करते समय आसपास विभिन्न प्रकार के जीव जंतु तथा पंछियों की कौतूहल रहती है। धान की रोपाई करते समय अबला अपनी धोती को भीगने से