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चेहरे का राज..

मैं जानता हूं तुम्हारे अंदर राज बहुत गहरा है, क्योंकि इस सुंदर चेहरे के पीछे भी एक चेहरा है, तुम्हें लगता है अनजान है यह महफिल तुम्हारे साजिश से, पर तुम्हारे हर एक चाल पर इन नजरों का पहरा है। बड़ी देर से चुपचाप बैठे हो गर्दिश में, शायद इरादा अगले दाव का है, मैं जानता हूं तुम मुस्कुराने नहीं दोगे मुझे, क्योंकि मकसद तुम्हारा रूठ जाने का है। चेहरे पर हंसी और दिल पर घात लगाए बैठे हो, कल लूटा घर रकीब का आज मुझसे आस लगाए बैठे हो, मैं कोई कोठे पर लुटती हुई इज्जत का नजराना नहीं, जो मुझे पाने की उम्मीद में तख्त लगाए बैठे हो। कब तक छुपाओगे तुम मुखौटे में यह काला चेहरा, एक दिन साजिशें- ए-राज से पर्दा हट ही जाएगा, फिर कैसे लूटोगे तुम मेरे दिल की आबरू को, जब मेरी हर बात में तुम्हें तिरस्कार नजर आएगा। हर शक्ल पर धोखा व्याख्या:- यह कविता विरेंद्र प्रताप द्वारा रचित कविता है। इस कविता में इंसान के खराब चरित्र वर्णन किया गया है। कवि कहता है कि मुझे तुम्हारे राज के बारे में पता है, तुम्हें यही लगता होगा की जो साजिश तुम रच रहे हो वह किसी को ज्ञात नहीं होगा। पर मैं तुम्हारी