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चेहरे का राज..

मैं जानता हूं तुम्हारे अंदर राज बहुत गहरा है,
क्योंकि इस सुंदर चेहरे के पीछे भी एक चेहरा है,
तुम्हें लगता है अनजान है यह महफिल तुम्हारे साजिश से,
पर तुम्हारे हर एक चाल पर इन नजरों का पहरा है।

बड़ी देर से चुपचाप बैठे हो गर्दिश में,
शायद इरादा अगले दाव का है,
मैं जानता हूं तुम मुस्कुराने नहीं दोगे मुझे,
क्योंकि मकसद तुम्हारा रूठ जाने का है।

चेहरे पर हंसी और दिल पर घात लगाए बैठे हो,
कल लूटा घर रकीब का आज मुझसे आस लगाए बैठे हो,
मैं कोई कोठे पर लुटती हुई इज्जत का नजराना नहीं,
जो मुझे पाने की उम्मीद में तख्त लगाए बैठे हो।

कब तक छुपाओगे तुम मुखौटे में यह काला चेहरा,
एक दिन साजिशें- ए-राज से पर्दा हट ही जाएगा,
फिर कैसे लूटोगे तुम मेरे दिल की आबरू को,
जब मेरी हर बात में तुम्हें तिरस्कार नजर आएगा।

Raaj Dil Ka
हर शक्ल पर धोखा

व्याख्या:-

यह कविता विरेंद्र प्रताप द्वारा रचित कविता है। इस कविता में इंसान के खराब चरित्र वर्णन किया गया है।
कवि कहता है कि मुझे तुम्हारे राज के बारे में पता है, तुम्हें यही लगता होगा की जो साजिश तुम रच रहे हो वह किसी को ज्ञात नहीं होगा। पर मैं तुम्हारी हर एक चाल पर नजर रखता हूं। तुम मेरा फायदा उठाने के लिए जितनी भी चाल चलने की सोचते हो उससे मैं पहले से ही अवगत हूं।
तुम चुपचाप इसलिए बैठे हो ताकि तुम मुझसे रूठ जाओ और मैं तुम्हें मनाने में लग जाऊं और इससे तुम मुझसे रिश्ता बनाने में कामयाब हो जाओ। पर मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगा मैं तुम्हारे चाल में फसने वाला नहीं हूं।
तुम मुझसे बातें करते समय मुस्कुराते रहते हो परंतु यह मुस्कुराहट सच्ची नहीं है, इस मुस्कुराहट के पीछे एक गहरा राज दबा हुआ है।
पर शायद तुम्हें पता नहीं कि मैं कोई नजराना नहीं हूं जिसकी उम्मीद तुम लगाए बैठे हो। मुझे पाने के लिए तुम्हारे एक चाल चलोगे पर मैं हर एक चाल पर तुम्हें मात देता रहूंगा।

इस कविता में कवि व्यक्ति को समझाते हुए कहता है कि तुम कब तक अपनी सच्चाई को छुपाते फिरोगे। किसी ना किसी दिन तुम्हारे राज का पता सबको चल ही जाएगा। उस दिन से तुम्हारे प्रति संवेदनाएं खत्म हो जाएंगे। और तुम्हें सब तिरस्कार की नजर से देखने लगेंगे।




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