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स्वतंत्रता दिवस पर कविता|भारत की कहानी

पुलकित पुष्प सुबह-सवेरे, मंत्रमुग्ध कर जाती हैं, कोयल की कू-कू को सुनकर, मीरा कृष्ण भजन को गाती है, प्रेम रस की प्यासी अभागी, पुष्प मनोहर चुन कर लाती है, कृष्ण  प्रेम की मधुर कहानी, घर-घर तक पहुंचाती है, भक्ति भाव से भरा हुआ, यह व्यथा नहीं पुरानी है, नहीं गाथा यह देवलोक का, मेरे भारत की यह कहानी है। जंग लगी तलवार में धार वह लगाती है, बैठ वह दरबार में शान को बढ़ाती है, गर्जना आवाज में पितृसत्ता को झुठलाती है, रोए उसके दुश्मन दांव ऐसा वह लगाती है, रण में हो अकेले पांव पीछे ना हटाती है, खूब लड़ी मर्दानी झांसी की रानी कहलाती है, वीरता से भरा हुआ, यह व्यथा नहीं पुरानी है, नहीं गाथा यह देव लोक का, मेरे भारत की यह कहानी है। दानवीर बहुतों को देखा,  हरिश्चंद्र सा दानी नहीं, दान किया संपत्ति सारा, मन में कोई ग्लानि नहीं, दर-दर भटकता ठोकर खाता, समझौता स्वाभिमान से नहीं, पत्नी बेची खुद को बेचा, पर बेचा अपना ईमान नहीं, झुक गए उसके आगे देवता, फिर भी उसे अभिमान नहीं, शील भाव से भरा हुआ, यह व्यथा नहीं पुरानी है, नहीं गाथा यह देवलोक का, मेरे भारत की यह कहानी। स्वतंत्रता दिवस पर कविता चर्चा:- हमारा दे