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ख्वाहिशें थी। लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

काले बादल छट जाएंगे ....

   तुम्हारी ख्वाहिशें तनिक धीरज धर मानुष, काले बादल छट जाएंगे। इतना ना अधीर बन, इतना ना गंभीर बन, समझ ना खुद को अकेला, वीर जैसा निर्भीक बन। सोचता था पिस चुका हूं, काम की भरमार में, वक्त मिले क्षण भर का तो,  बैठ सकूं परिवार में। सोचती थी मैं अकेले, भरतार मेरे परदेस हैं, होते जब वे साथ मेरे, मिट जाता हर क्लेश है। देखता था आसमान को, मानव कृत्य नजर आते थे, प्रदूषण से धरती रोती, देख कलेजा फट जाते थे। अब थम गई रफ्तार है, सूना सब संसार है, चाहता था जो तू ख्वाहिशों में, मिला वही वरदान है। घर में पंछी फिर गाएंगे, धरती गगन सब खिल जाएंगे, तनिक धीरज धर मानुष, काले बादल छठ जाएंगे।