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अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Jindagi Ka arth|जिंदगी का अर्थ

बारी बारी से सबने अपना दिल बहलाया, खुशियां वे ले गए गम मेरी झोली में आया, ऐ जिंदगी तुझसे इतनी शिकायत कभी ना थी, यही जिंदगी का दस्तूर है बोलकर सबने मुझे भड़काया । तू तो माली है उस  तपोवन का, जहां आत्मा को ईश्वर का बोध होता है, तेरी शिकायत करना तो निर्लज्जता है मेरी, तेरे कर से ही तो पुष्पो का शोध होता है। तू है तो अनुभव है इस भौतिक संसार का, तेरे होने से ही तो सीखा है  अभिनय तेरे किरदार का, तू नहीं तो मंच सूना फिर क्या दर्शक के इंतजार का, इन्हें भी तो देखना है लुटती हुई दौलत हकदार का। खत्म हुए गिले-शिकवे जब जाना क्या है जिंदगी, यह सब मेरे कर्मों का फल है जाना अब ऐ जिंदगी, शिकायत तुझसे जो किया क्षमा कर देना मुझको ऐ जिंदगी, शत शत नमन तेरे कर्मों को दिया मुझे जो ये जिंदगी। Jindagi Ka arth चर्चा:- इस भौतिक संसार में बहुत से ऐसे प्राणी है जिन्हें अपनी जिंदगी से एक समय पर नफरत हो जाता है। परंतु इस प्रक्रिया में जिंदगी का कोई दोष नहीं होता। जिंदगी तो वो चीज है जो तुम्हें भौतिक चीजों से अनुभव कराती हैं, तुम्हें इस संसार में अनुभव प्राप्त करने का मौका प्रदान करती है। ऐसी परिस्थिति में जिंदगी क

स्वतंत्रता दिवस पर कविता|भारत की कहानी

पुलकित पुष्प सुबह-सवेरे, मंत्रमुग्ध कर जाती हैं, कोयल की कू-कू को सुनकर, मीरा कृष्ण भजन को गाती है, प्रेम रस की प्यासी अभागी, पुष्प मनोहर चुन कर लाती है, कृष्ण  प्रेम की मधुर कहानी, घर-घर तक पहुंचाती है, भक्ति भाव से भरा हुआ, यह व्यथा नहीं पुरानी है, नहीं गाथा यह देवलोक का, मेरे भारत की यह कहानी है। जंग लगी तलवार में धार वह लगाती है, बैठ वह दरबार में शान को बढ़ाती है, गर्जना आवाज में पितृसत्ता को झुठलाती है, रोए उसके दुश्मन दांव ऐसा वह लगाती है, रण में हो अकेले पांव पीछे ना हटाती है, खूब लड़ी मर्दानी झांसी की रानी कहलाती है, वीरता से भरा हुआ, यह व्यथा नहीं पुरानी है, नहीं गाथा यह देव लोक का, मेरे भारत की यह कहानी है। दानवीर बहुतों को देखा,  हरिश्चंद्र सा दानी नहीं, दान किया संपत्ति सारा, मन में कोई ग्लानि नहीं, दर-दर भटकता ठोकर खाता, समझौता स्वाभिमान से नहीं, पत्नी बेची खुद को बेचा, पर बेचा अपना ईमान नहीं, झुक गए उसके आगे देवता, फिर भी उसे अभिमान नहीं, शील भाव से भरा हुआ, यह व्यथा नहीं पुरानी है, नहीं गाथा यह देवलोक का, मेरे भारत की यह कहानी। स्वतंत्रता दिवस पर कविता चर्चा:- हमारा दे

Kavita in Hindi|कृष्ण तुम लौटकर आओ

गदा, त्रिशूल या चक्र चलाओ, धरा पाप से मुक्त कराओ, हे गोविंद तुम बनो सहायक, कलयुग में भी लौटकर आओ। नहीं सुरक्षित घर की नर-नारी, सता रहे हर क्षण व्यभिचारी, मदन मोहन कृपा दिखलाओ, कलयुग में भी लौटकर आओ। अब रहा फर्क ना पाप-पुण्य में, पनप रहे व्यापारी धर्म में, श्री  कृष्ण तुम बनो सहायक, इनको धर्म का पाठ पढ़ाओ, कलयुग में भी लौटकर आओ, छल,कपट, चोरी, बेईमानी, मानव स्वभाव की बनी निशानी, प्रेम, सज्जनता रख ताख पर, खाता बासी भात पुरानी, सद्बुद्धि दो इनको आकर, मानवता  की ज्योति जलाओ, कलयुग में भी लौट कर आओ। Kavita in hindi चर्चा:- इस कलयुग में पाप बढ़ता ही जा रहा है। धर्म तो मानो एक व्यापार की तरह हो गया है। धर्म का प्रयोग राजनीतिक तथा आर्थिक लाभ के लिए किया जा रहा है। वह युग अब खत्म हो चुका है जब धर्म को पूज्य एवं सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। धर्म से लोगों को मानवता तथा सज्जनता की शिक्षा प्राप्त होती थी। परंतु वर्तमान काल में धर्म के लिए लोग मारकाट करते जा रहे हैं। कलयुग की इस विषम परिस्थिति में भगवान श्री कृष्ण आप की बहुत ही आवश्यकता है। जिस प्रकार आप हर युग में पाप का नाश करने के लिए अलग-अलग अवतार