बारी बारी से सबने अपना दिल बहलाया,
खुशियां वे ले गए गम मेरी झोली में आया,
ऐ जिंदगी तुझसे इतनी शिकायत कभी ना थी,
यही जिंदगी का दस्तूर है बोलकर सबने मुझे भड़काया ।
तू तो माली है उस तपोवन का,
जहां आत्मा को ईश्वर का बोध होता है,
तेरी शिकायत करना तो निर्लज्जता है मेरी,
तेरे कर से ही तो पुष्पो का शोध होता है।
तू है तो अनुभव है इस भौतिक संसार का,
तेरे होने से ही तो सीखा है अभिनय तेरे किरदार का,
तू नहीं तो मंच सूना फिर क्या दर्शक के इंतजार का,
इन्हें भी तो देखना है लुटती हुई दौलत हकदार का।
खत्म हुए गिले-शिकवे जब जाना क्या है जिंदगी,
यह सब मेरे कर्मों का फल है जाना अब ऐ जिंदगी,
शिकायत तुझसे जो किया क्षमा कर देना मुझको ऐ जिंदगी,
शत शत नमन तेरे कर्मों को दिया मुझे जो ये जिंदगी।
Jindagi Ka arth |
चर्चा:-
Jindagi Ka arth |
अति उत्तम वीरेंद्र जी सराहनीय प्रयास।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदय
हटाएं