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Jindagi Ka arth|जिंदगी का अर्थ

बारी बारी से सबने अपना दिल बहलाया,

खुशियां वे ले गए गम मेरी झोली में आया,

ऐ जिंदगी तुझसे इतनी शिकायत कभी ना थी,

यही जिंदगी का दस्तूर है बोलकर सबने मुझे भड़काया ।


तू तो माली है उस तपोवन का,

जहां आत्मा को ईश्वर का बोध होता है,

तेरी शिकायत करना तो निर्लज्जता है मेरी,

तेरे कर से ही तो पुष्पो का शोध होता है।


तू है तो अनुभव है इस भौतिक संसार का,

तेरे होने से ही तो सीखा है अभिनय तेरे किरदार का,

तू नहीं तो मंच सूना फिर क्या दर्शक के इंतजार का,

इन्हें भी तो देखना है लुटती हुई दौलत हकदार का।


खत्म हुए गिले-शिकवे जब जाना क्या है जिंदगी,

यह सब मेरे कर्मों का फल है जाना अब ऐ जिंदगी,

शिकायत तुझसे जो किया क्षमा कर देना मुझको ऐ जिंदगी,

शत शत नमन तेरे कर्मों को दिया मुझे जो ये जिंदगी।

Zindagi Ka arth
Jindagi Ka arth

चर्चा:-

इस भौतिक संसार में बहुत से ऐसे प्राणी है जिन्हें अपनी जिंदगी से एक समय पर नफरत हो जाता है। परंतु इस प्रक्रिया में जिंदगी का कोई दोष नहीं होता। जिंदगी तो वो चीज है जो तुम्हें भौतिक चीजों से अनुभव कराती हैं, तुम्हें इस संसार में अनुभव प्राप्त करने का मौका प्रदान करती है। ऐसी परिस्थिति में जिंदगी को दोष देना उचित नहीं है।
Jindagi Ka arth
Jindagi Ka arth

 तुम्हारे इस जीवन में यदि किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न होती है या तुम्हें कष्ट पहुंचता है तो इसमें जिंदगी का कोई कुसूर नहीं होता है।
यह सब तुम्हारे कर्म का प्रतिफल होता है। तुम जिस प्रकार के व्यवहार लोगो के साथ करोगे लोग तुम्हारे साथ उसी प्रकार का व्यवहार करेंगे
अब चाहे वह व्यवहार तुम्हें कष्टदाई लगे या सुखदाई लगे।

मेरे इन कविताओं को भी जरूर पढ़ें:-


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