गांव और शहर कविता
घर आंगन की गोदी को
रातों में मां की लोरी को
नटखट यादों की बोरी को
रेशम राखी की डोरी को
कुछ पाने की लालच में
पीछे बहुत कुछ छोड़ आए।
हां हम शहर आए… हां हम शहर आए…
पकती खेतों में बाली को
खिलती आसमान में लाली को
गाते गांव में कव्वाली को
जलते जगमग दिवाली को
कुछ पाने की लालच में
पीछे बहुत कुछ छोड़ आए
हां हम शहर आए… हां हम शहर आए…
गांव और शहर कविता |
सरसों पर खिलती रत्नों को
बचपन के छोटे सपनों को
घर के हर एक अपनों को
गृहस्थ जीवन के विघ्नों को
कुछ पाने की लालच में
सबसे हर नाता तोड़ आए
हां हम शहर आए…हां हम शहर आए…
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