खुशी की तलाश में:-
हर रोज की तरह आज भी घर में जोर शोर से हो रही लड़ाईयों की आवाज से मेरी नींद टूट गई यानी सुबह हो चुका था। यहां सुबह की पहचान सूरज की किरणों से नहीं तेज आवाजों से की जाती है।
रोज की तरह दैनिक क्रिया का निपटान करके निकल पड़ा था जिंदगी की जद्दोजहद से जूझने। जहां भी जाओ हर तरफ गम के बादल ही दिखाई पड़ते हैं। हर इंसान खुद को गम के पिंजरे में कैद कर रखा है।
अभी तो मेरी जिंदगी की शुरुआत हुई है और इन शुरुआती दौर में भी गम और तनाव मेरे पीछे पीछे परछाई की तरह चल रही है। यह एक ऐसी परछाई है जो प्रकाश के चले जाने के बाद भी मेरा साथ नहीं छोड़ती है। कभी-कभी सोचता हूं यदि यह खुशी की परछाई होती तो मैं कभी प्रकाश को बुझने ही ना देता।
जिंदगी में जो उल्लास और कुछ कर गुजरने का जज्बा था वह भी अब धीरे-धीरे अपना दम तोड़ रहा था। इसे जिंदा रखने की हर कोशिश नाकाम लग रही थी। दूसरों से खुशी पाने की उम्मीद में मैं खुद की पहचान को भूलने लगा था। आंखें बंद हो या खुली चारों तरफ सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा था। इस संसार में सुखों की प्राप्ति के लिए हर किसी को रिझाने की कोशिश में लगा था। परंतु दूसरों में खुशी ढूंढते ढूंढते मैं अपनों से दूर होता जा रहा था।
चमेली का फूल:-
हर तरफ से निराशा को साथ लेकर थक हार के शाम को मैं अपने घर आता हूं। अपने मस्तिष्क में चल रहे निराशावादी विचारों को विराम देकर दो वक्त के लिए मैं अपने घर के पास एक पेड़ की छाया में बैठ गया और करता भी क्या अब किसी अन्य छाया की उम्मीद भी तो नहीं बची थी।
अचानक मेरी नजर घर के बगल में उगे एक पौधे पर पड़ती है। वह पौधा मुझे आकर्षित करने लगा। मेरे अंदर उठकर देखने जाने तक का भी साहस नहीं बचा था। परंतु शायद उसकी आकर्षण शक्ति इतनी अधिक थी कि मेरे अंदर साहस उत्पन्न हो गया और मैं उस पौधे के पास जा कर बैठ गया। उस पौधे को जब मैंने ध्यान से देखा तो ऐसा लग रहा था जैसे वह मुझसे कुछ कहना चाहता हो शायद उसे भी मुझसे कुछ शिकायत थी।
उस पौधे की पहचान कर पाना मेरे लिए बेहद कठिन था। क्योंकि इतने दिनों में मेरी नजर कभी उस पर नहीं पड़ी और शायद यही उसकी शिकायत भी थी। उसके पत्तों की हरियाली जैसे मेरे अंदर एक नए युग की शुरुआत कर रही थी। जैसे वह मुझसे बोल रही हो कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है एक उम्मीद जो अभी भी तुम्हारे जीवन में हरियाली ला सकती है। उसकी जड़ें जो पूरी तरह मिट्टी से ढकी नहीं थी ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी बुजुर्ग का पैर हो जो उम्र के कारण सिकुड़ने लगी है।
परंतु जड़ों से ऊपर टहनियों को देखता हूं तो उनका बिखराव कुछ इस तरह है जैसे जवानी अभी-अभी अंगड़ाइयां लेना शुरू की है।
उसे देख कर कोई भी उसकी उम्र का अंदाजा नहीं लगा सकता है। उसके फूल सफेद बर्फ की तरह दिखाई पड़ रहे थे ऐसा लगता था जैसे देवदार के पेड़ों पर बर्फबारी की गई है।
फूलों की पंखुड़ियां चारों तरफ अपनी हाथों को फैलाकर जैसे मुस्कुरा रही थी। उनकी यह मुस्कुराहट देखकर मेरे भी चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई।
शायद अब उसकी शिकायत खत्म हो चुकी थी उसके चेहरे पर मैं मुस्कुराहट देख पा रहा था। उनकी वजह से आज मेरी भी शिकायत खत्म हो चुकी थी।
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