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Jindagi Ka arth|जिंदगी का अर्थ

बारी बारी से सबने अपना दिल बहलाया, खुशियां वे ले गए गम मेरी झोली में आया, ऐ जिंदगी तुझसे इतनी शिकायत कभी ना थी, यही जिंदगी का दस्तूर है बोलकर सबने मुझे भड़काया । तू तो माली है उस  तपोवन का, जहां आत्मा को ईश्वर का बोध होता है, तेरी शिकायत करना तो निर्लज्जता है मेरी, तेरे कर से ही तो पुष्पो का शोध होता है। तू है तो अनुभव है इस भौतिक संसार का, तेरे होने से ही तो सीखा है  अभिनय तेरे किरदार का, तू नहीं तो मंच सूना फिर क्या दर्शक के इंतजार का, इन्हें भी तो देखना है लुटती हुई दौलत हकदार का। खत्म हुए गिले-शिकवे जब जाना क्या है जिंदगी, यह सब मेरे कर्मों का फल है जाना अब ऐ जिंदगी, शिकायत तुझसे जो किया क्षमा कर देना मुझको ऐ जिंदगी, शत शत नमन तेरे कर्मों को दिया मुझे जो ये जिंदगी। Jindagi Ka arth चर्चा:- इस भौतिक संसार में बहुत से ऐसे प्राणी है जिन्हें अपनी जिंदगी से एक समय पर नफरत हो जाता है। परंतु इस प्रक्रिया में जिंदगी का कोई दोष नहीं होता। जिंदगी तो वो चीज है जो तुम्हें भौतिक चीजों से अनुभव कराती हैं, तुम्हें इस संसार में अनुभव प्राप्त करने का मौका प्रदान करती है। ऐसी परिस्थिति में जिंदगी क

स्वतंत्रता दिवस पर कविता|भारत की कहानी

पुलकित पुष्प सुबह-सवेरे, मंत्रमुग्ध कर जाती हैं, कोयल की कू-कू को सुनकर, मीरा कृष्ण भजन को गाती है, प्रेम रस की प्यासी अभागी, पुष्प मनोहर चुन कर लाती है, कृष्ण  प्रेम की मधुर कहानी, घर-घर तक पहुंचाती है, भक्ति भाव से भरा हुआ, यह व्यथा नहीं पुरानी है, नहीं गाथा यह देवलोक का, मेरे भारत की यह कहानी है। जंग लगी तलवार में धार वह लगाती है, बैठ वह दरबार में शान को बढ़ाती है, गर्जना आवाज में पितृसत्ता को झुठलाती है, रोए उसके दुश्मन दांव ऐसा वह लगाती है, रण में हो अकेले पांव पीछे ना हटाती है, खूब लड़ी मर्दानी झांसी की रानी कहलाती है, वीरता से भरा हुआ, यह व्यथा नहीं पुरानी है, नहीं गाथा यह देव लोक का, मेरे भारत की यह कहानी है। दानवीर बहुतों को देखा,  हरिश्चंद्र सा दानी नहीं, दान किया संपत्ति सारा, मन में कोई ग्लानि नहीं, दर-दर भटकता ठोकर खाता, समझौता स्वाभिमान से नहीं, पत्नी बेची खुद को बेचा, पर बेचा अपना ईमान नहीं, झुक गए उसके आगे देवता, फिर भी उसे अभिमान नहीं, शील भाव से भरा हुआ, यह व्यथा नहीं पुरानी है, नहीं गाथा यह देवलोक का, मेरे भारत की यह कहानी। स्वतंत्रता दिवस पर कविता चर्चा:- हमारा दे

Kavita in Hindi|कृष्ण तुम लौटकर आओ

गदा, त्रिशूल या चक्र चलाओ, धरा पाप से मुक्त कराओ, हे गोविंद तुम बनो सहायक, कलयुग में भी लौटकर आओ। नहीं सुरक्षित घर की नर-नारी, सता रहे हर क्षण व्यभिचारी, मदन मोहन कृपा दिखलाओ, कलयुग में भी लौटकर आओ। अब रहा फर्क ना पाप-पुण्य में, पनप रहे व्यापारी धर्म में, श्री  कृष्ण तुम बनो सहायक, इनको धर्म का पाठ पढ़ाओ, कलयुग में भी लौटकर आओ, छल,कपट, चोरी, बेईमानी, मानव स्वभाव की बनी निशानी, प्रेम, सज्जनता रख ताख पर, खाता बासी भात पुरानी, सद्बुद्धि दो इनको आकर, मानवता  की ज्योति जलाओ, कलयुग में भी लौट कर आओ। Kavita in hindi चर्चा:- इस कलयुग में पाप बढ़ता ही जा रहा है। धर्म तो मानो एक व्यापार की तरह हो गया है। धर्म का प्रयोग राजनीतिक तथा आर्थिक लाभ के लिए किया जा रहा है। वह युग अब खत्म हो चुका है जब धर्म को पूज्य एवं सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। धर्म से लोगों को मानवता तथा सज्जनता की शिक्षा प्राप्त होती थी। परंतु वर्तमान काल में धर्म के लिए लोग मारकाट करते जा रहे हैं। कलयुग की इस विषम परिस्थिति में भगवान श्री कृष्ण आप की बहुत ही आवश्यकता है। जिस प्रकार आप हर युग में पाप का नाश करने के लिए अलग-अलग अवतार

Hindi poetry|मेरी अधूरी कहानी

हूं मैं शायर कहानी सुनाता तुझे, आ गए पहलू में दिल धड़कने लगा, उनकी होठों की मुस्कान कातिल लगी, धीरे धीरे से सब कुछ समझने लगा। आए हैं मेरे दिल को चुराने यहां, इन अदाओं से मुझको बुलाने लगे, खिंचता चलता गया मैं तो उनकी तरफ, उनकी कातिल निगाहें सताने लगे। आके बोली कि क्या हाल तेरा है अब, तुझे देखे हुए एक जमाने हुए, शायद आई नहीं याद मेरी तुझे, इसलिए बैठे हो तुम भुलाए हुए। इतना सुनकर मेरा हाल ऐसा हुआ, लगता अम्बर से परियां बुलाने लगी, बुझता दिया जला फिर से दिल में मेरे, रफ्ता रफ्ता मेरे पास आने लगी। सपने  बुनता रहा मैं खड़े के खड़े, इतने में एक सुनामी लहर आ गई, मम्मी कहकर पुकारा किसी ने उसे, उसकी बेटी मुझे भी नजर आ गई। सपने  टूटे मेरे मैं तो गया ठहर, नम आंखें मेरी मुझसे कहने लगे, बनजा शाकी मिट जाए गम सारे तेरे, आज मयखाने भी है बुलाने लगे। Hindi poetry मेरी इस कविता को भी जरूर पढ़ें। मानवता की हत्या दर्दे दिल

Hindi poem|संकल्प हमारा है

ठोकर जितनी लगेगी , हौसले उतने ही मजबूत होंगे, आज समय विपरीत है तो क्या, एक दिन यह कायनात भी मेरे होंगे। बंद है मेरी किस्मत, परिस्थिति के तहखाने में, कभी तो मिल ही जाएगी इसकी चाभी, अभी चालाकी इतनी भी नहीं जमाने में। डुबोना तुम चाहते थे पतवार मेरी, डूब तुम्हारा ईमान गया, मैं तो तिनके से भी तैर सकता था, मुझे डुबोते वक्त शायद यह भूल गया। मैं तो पथिक हूं ना रुकना जानता हूं, राहों में पड़े कांटो से लड़ना जानता हूं, यह हुनर मेरी कोई पैदाइशी नहीं, तुमने ही सिखाया है जो मैं चलना जानता हूं। जो ठान कर आए हो यहां, उसे पूरा करके ही सोना है, गर थक कर बैठ गए आज पथ पर, तो अपनी ना कामयाबी पर हर पल रोना है। Hindi poem|संकल्प हमारा है Hindi poem चर्चा:- उपरोक्त पंक्तियां दृढ़ निश्चय और  संकल्प की तरफ इशारा करते हैं। व्यक्ति जब अपने मन में कुछ ठान लेता है और वह अपने कार्य के प्रति ईमानदार हो जाता है तो उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है।। इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में रुकावटें और कठिनाइयां सभी के समक्ष आती हैं परंतु इन कठिनाइयों से डरना नहीं चाहिए बल्कि इनसे मुकाबला करना चाहिए जिससे तुम्हारे सफलता का म

Manavta ki hatya|मानवता की हत्या

था वह युग मानवता का, गज को गणेश बनाया था, सिद्ध किया मानव अस्तित्व को, पत्थर को पूज्य बनाया था। सतयुग,द्वापर, त्रेतायुग में, स्वार्थ मुक्त बलिदान था, खेलते थे भरत सिंह से, मानव जाति पर अभिमान था। आ गया है घोर कलयुग, प्रेम ,स्नेह का अंत हुआ, छल,कपट,चोरी,बेईमानी, मानव स्वभाव का अंग हुआ। क्या कसूर था उस नन्हीं जान का, जिसको कोख में है मार दिया, देख ना पाई चलन जहां का, मां का हृदय भी चीर दिया। मर गए हैं जमीर सबके, यह देख हृदय तड़पता है, छेद हुआ मानवता की जड़ में, छोड़ो, किसी को क्या फर्क पड़ता है। Manavta ki h चर्चा:- यह कविता केरल की घटना से प्रेरित होकर लिखी गई है। जिस प्रकार एक गर्भवती हथिनी की हत्या की गई यह  मानवता की हत्या ही कह लाएगी। मानव सभ्यता प्रकृति के साथ ही प्रारंभ हुई है और मानव को प्रकृति में जीव जंतुओं को भी हिस्सेदारी देनी पड़ेगी। मानव यदि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता है तो उसे इसकी सजा भुगतनी पड़ेगी। Manavta ki hatya उपरोक्त पंक्तियों में यह बताया गया है कि किस प्रकार मानव का स्वभाव था कि वह  हाथी को गणेश के समान मानता था परंतु अब केरल में उसी  हाथी की हत्या कर दी गई।

Kisan|रोपण के दिन

पंछी कूदे पल्लव पल्लव, कागा भी टेरी लगाए, भवन छोड़ निकली तितली सब, लगता रोपण के दिन आए। खेतन कामिनी लगी अकेले, रोपत धान मुस्काए, धोती जांघ बराबर बांधे, सावन गीत गुनगुनाए। बार-बार मराल के नयना, अबला को देखत जाए, हिला कपाल दाएं बाएं से, टोली हो रहा चिढ़ाए। मेंढक मेढ़ किनारे बैठा, टर टर की बांग लगाए, डर कर दुबकी मृगनयनी, फिर पति को रही बुलाए। रोपत धान दृश्य देखकर, मन गदगद हुई जाए, लगा  किसान नित्य खेतन में, उसका वही स्वर्ग कहलाए। Kisan ke Ropan ke din शब्दार्थ:- कामिनी-- स्त्री मराल--हंस पल्लव--पत्ता चर्चा:-kisan प्रस्तुत पंक्तियों में गांव के आषाढ़ महीने का वर्णन किया गया है। इस महीने में धान की रोपाई की जाती है। गांव में धान की रोपाई के लिए औरतों की टोली खेतों में काम करती है। पुरुष खेत को बराबर करने तथा रोपने योग्य बनाते हैं। उपरोक्त पंक्तियों में किस प्रकार एक अबला स्त्री खेत में धान की रोपाई करती है तथा उस समय का जो दृश्य है उसी का वर्णन किया गया है। धान की रोपाई करते समय आसपास विभिन्न प्रकार के जीव जंतु तथा पंछियों की कौतूहल रहती है। धान की रोपाई करते समय अबला अपनी धोती को भीगने से