आज भी वह शीत वाली सुबह है,
आज भी लहलहाते फसलों की खुशबू है,
चिड़ियों की चहचहाहट और कोयल की बोली भी है,
नहीं है तो किसी के पास समय,
इसे देखने का इसे सुनने का इसे महसूस करने का।
ठंडी की सुबह आज भी दोनों हाथों से
स्वागत करती है, जो उनके प्रेमी हैं,
परंतु उसके चौखट पर कोई मेहमान आता ही नहीं।
गर्मी की शाम सिर्फ खेतों को ठंडा करती हैं,
उसके इस गुण का स्वाद तो कोई लेता ही नहीं।
व्यस्ततम दुनिया भूल गई अपने उस साथी को,
जो जन्म से मरण तक साथ रहता है,
भूल गई उसकी अमिट छाप को,
जो हर पल उसके साथ रहता है।
प्रकृति आज भी मुस्कुरा दे गर देख दो उसकी तरफ,
कमबख्त उसकी तरफ कोई देखता ही नहीं।
Natural beautyचर्चा:-आधुनिक काल में लोक पश्चिमी संस्कृति की तरफ बढ़ते जा रहे हैं और अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। प्रकृति जो हमारा पालन-पोषण करती है हम उसके महत्व को भूलते जा रहे हैं। हमारे पास अभी इतना भी समय नहीं है की प्रकृति को कुछ समय दान दे सकें। प्रकृति अपनी सुंदरता से अभी भी पूर्ण है परंतु उसकी तरफ किसी की नजर ही नहीं पड़ती, लोग बस कृतिम वस्तुओं की तरफ आकर्षित होते दिख रहे हैं। खेत खलिहान, जंगल, पर्वत और मैदान की सुंदरता मनमोहक होती है इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे संसार का हर सुख प्राप्त हो गया, परंतु लोग प्राकृतिक सुख न लेकर कटिंग वस्तुओं के भीतर सुख तलाशते नजर आ रहे हैं। आज से कुछ वर्ष पहले दिन की शुरुआत चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर होती थी, उगता हुआ सूरज देखने के बाद मन शांत सा हो जाता था, परंतु अब तो लोग दिन की शुरुआत अलार्म से करते हैं। जरूरत है कि आप प्रकृति की तरफ देखें क्योंकि प्रकृत अब अपने आप को सोतेला समझने लगा है ऐसे में आप उनके साथ ही बने नहीं तो मानव सभ्यता का विनाश हो जाएगा। मेरे इन रचनाओं को जरूर पढ़ें: - |
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