दहेज पर कविता:
पिता के चेहरे पर मायूसी,
मुझसे देखी जाती ना,
भाव विभोर हुआ मन मेरा,
चैन कहीं भी पाती ना,
हुई लालची दुनिया सारी,
मैं मोलभाव कर पाती ना,
पिता के आंखों में आंसू लाके,
दुनिया नहीं बसाना है,
मुझे साजन घर नहीं जाना है।
ग़ज़ल:
लाल स्याही की किताब बन जाओ तुम,
सर्द मौसम का आफताब बन जाओ तुम,
तुम्हारा सजदा ही हो ख्वाहिश मेरी,
मेरे फुलवारी का गुलाब बन जाओ तुम।
निशाचरी बेला में जो झकझोर के उठा दे,
सर्द रातों की ऐसी ख्वाब बन जाओ तुम।
तुम्हारे आगोश में हम खोए रहे दिन रात,
मयकदे की ऐसी शराब बन जाओ तुम।
हर तरफ बस तुम्हें ही पाने की जिद हो,
मेरे दिल के शहर का इंकलाब बन जाओ तुम।
उम्र का तकाजा अब जीने नहीं देता,
आकर मेरी जिंदगी का शबाब बन जाओ तुम।
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