सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ईद आई है|Eid Mubarak

रोशन किया जहां सारा,
मन में एक उम्मीद जगाई है,
चमक उठा धरती अंबर सब,
कि ईद आई है, ईद आई है।

कानों की लटकती बाली ने,

हाथों में चमकती लाली ने, 
घर में खिलती खुशहाली ने,
यह संदेशा लाई है,
कि ईद आई है, ईद आई है।

ईदी के चमकते सिक्को ने,

गुल महकाते हर रिश्तो ने,
अल्लाह के भेजे फरिश्तों ने,
सबको यह बतलाई है,
कि ईद आई है, ईद आई है।

लड़ियों से सजती गलियों ने,

इत्र से महकती सखियों ने,
मस्जिद पर दिखती परियों ने,
यह संकेत दिखाई है,
कि ईद आई है, ईद आई है।


ईद मुबारक
ईद मुबारक


ईद:-

       ईद मुस्लिम धर्म का एक पवित्र त्यौहार माना गया है। यह रमजान महीने के रोजे खत्म होने के बाद मनाया जाता है। रमजान के महीने में मुस्लिम धर्म के लोग उपवास रखते हैं जिसे रोजा कहा जाता है।

प्रस्तुत पंक्तियां ईद की आने के संकेतों का वर्णन करती है। ईद के दिन मुस्लिम औरतें तथा पुरुष नए-नए वस्त्र धारण करते हैं तथा अपने सगे संबंधियों के घर जाकर गले लग कर मुबारकबाद देते हैं।
इस त्यौहार से आपस में भाईचारा बनाए रखना तथा मिल जुल कर रहने का संकेत मिलता है।

ईद के त्यौहार के दिन सभी लोग ईदगाह पर एकत्रित होते हैं। ईदगाह पर बहुत बड़ा मेले का आयोजन रहता है। यहां पर मिठाइयों के दुकान, खिलौनों की दुकान,कपड़ों की दुकान तथा झूले लगे होते हैं। बच्चे इस पल का बहुत ही हर्षोल्लास से आनंद लेते हैं।

ईद के दिन सभी लोग अल्लाह को धन्यवाद देते हैं कि वह उन्हें रोजा रखने में खूब मदद की है।
इस दिन वे अल्लाह को याद करके अपनी मुराद मांगते हैं ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो कुछ भी अल्लाह से मांगोगे वह मुराद जरूर पूरी होगी।

ईद के दिन घर में सेवई तथा मिठाइयां एवं गोश्त बनते हैं। इस दिन अपने सगे संबंधियों तथा रिश्तेदारों को आमंत्रित किया जाता है। वे बड़े ही निष्ठा से एक दूसरे के घर पर दावत के लिए जाते हैं तथा उपहार में ईदी देते हैं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Krishna bhajan|राधा की विरह वेदना

मैं बैठी हूं आस लगाए, कब आओगे नंद गोपाल। तोहरी याद में रैना बीते, तोहरी आस में है जग छूटे, तो ताना देते हैं सब ग्वाल, कब आओगे नंद गोपाल। मथुरा जा के भूल गए तुम, याद निशानी छोड़ गए तुम, की भूल गए घर का चौपाल, कब आओगे नंद गोपाल। तुमको छलिया बोले सखियां, मुझको रुलाती है यह बतियां, की गारी देते हैं हर ग्वाल, कब आओगे नंद गोपाल। असुवन से कजरा मोरा छूटे, व्याकुल मन ह्रदय मेरा रूठे, कि अब तो घर आ जाओ नंदलाल, कब आओगे नंद गोपाल। मैं बैठी हूं आस लगाए, कब आओगे नंद गोपाल। Krishna bhajan चर्चा:- Krishna bhajan इस भजन में राधा के विरह का वर्णन किया गया है। जब श्री कृष्ण अपने मामा कंस के बुलावे पर मथुरा चले जाते हैं तो काफी समय बीत चुका होता है परंतु श्री कृष्ण वापस गोकुल नहीं आते। ऐसी परिस्थिति में राधा का मन बहुत दुखी हो जाता है की लगता है श्री कृष्ण मुझे भूल चुके हैं। राधा वृंदावन में बिल्कुल अकेली पड़ गई है। श्री कृष्ण के साथ के बिना उसका जीवन बिना माली के बाग के बराबर हो गया है। राधा श्री कृष्ण के इंतजार में अपनी पलकों को बिछा कर बैठी हुई है की कब मेरे कृष्ण आएंगे और मुझे अपने बांसुरी की मधुर धुन...

Manavta ki hatya|मानवता की हत्या

था वह युग मानवता का, गज को गणेश बनाया था, सिद्ध किया मानव अस्तित्व को, पत्थर को पूज्य बनाया था। सतयुग,द्वापर, त्रेतायुग में, स्वार्थ मुक्त बलिदान था, खेलते थे भरत सिंह से, मानव जाति पर अभिमान था। आ गया है घोर कलयुग, प्रेम ,स्नेह का अंत हुआ, छल,कपट,चोरी,बेईमानी, मानव स्वभाव का अंग हुआ। क्या कसूर था उस नन्हीं जान का, जिसको कोख में है मार दिया, देख ना पाई चलन जहां का, मां का हृदय भी चीर दिया। मर गए हैं जमीर सबके, यह देख हृदय तड़पता है, छेद हुआ मानवता की जड़ में, छोड़ो, किसी को क्या फर्क पड़ता है। Manavta ki h चर्चा:- यह कविता केरल की घटना से प्रेरित होकर लिखी गई है। जिस प्रकार एक गर्भवती हथिनी की हत्या की गई यह  मानवता की हत्या ही कह लाएगी। मानव सभ्यता प्रकृति के साथ ही प्रारंभ हुई है और मानव को प्रकृति में जीव जंतुओं को भी हिस्सेदारी देनी पड़ेगी। मानव यदि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता है तो उसे इसकी सजा भुगतनी पड़ेगी। Manavta ki hatya उपरोक्त पंक्तियों में यह बताया गया है कि किस प्रकार मानव का स्वभाव था कि वह  हाथी को गणेश के समान मानता था परंतु अब केरल में उसी  हाथी की ह...

गांव और शहर कविता | village and town poem in hindi

            गांव और शहर कविता घर आंगन की गोदी को रातों में मां की लोरी को नटखट यादों की बोरी को रेशम राखी की डोरी को कुछ पाने की लालच में पीछे बहुत कुछ छोड़ आए। हां हम शहर आए… हां हम शहर आए… पकती खेतों में बाली को खिलती आसमान में लाली को गाते गांव में कव्वाली को जलते जगमग दिवाली को कुछ पाने की लालच में पीछे बहुत कुछ छोड़ आए हां हम शहर आए… हां हम शहर आए… गांव और शहर कविता  सरसों पर खिलती रत्नों को बचपन के छोटे सपनों को घर के हर एक अपनों को गृहस्थ जीवन के विघ्नों को कुछ पाने की लालच में सबसे हर नाता तोड़ आए हां हम शहर आए…हां हम शहर आए… हमारी अन्य रचनाएं :-- मणिपुर की घटना गम की परिस्थिति कविता