किस्तों में कट रहा है दिन,
फिर क्यों निशब्द बैठी हो,
जान सका ना तेरी महिमा,
अब खुद ही बताओ तुम कैसी हो।
क्या तुम मां कौशल्या जैसी,
दुखी होकर भी मुस्कुराई थी,
दूर रहकर अपने बेटे से,
चौदह वर्ष बिताई थी।
क्या तुम मां देवकी जैसी,
कारावास में काल को हराई थी,
दूर छोड़ अपने बेटे को,
चाबुक से मार भी खाई थी।
क्या तुम माता मंदोदरी जैसी,
राक्षस कुल कि वह लुगाई थी,
उलझ पड़ी अपने पति से,
पुत्र वियोग में अकुलाई थी।
क्या तुम मां तारामती जैसी,
सत्यवादी की पत्नी कहलाई थी,
कफन मिला ना पुत्र के खातिर,
पति के आगे हाथ फैलाई थी।
सुनकर तेरी करुण गाथा,
तुम तो देवता जैसी हो,
फिर भी हूं दुविधा में मां,
अब खुद ही बताओ तुम कैसी हो। 2
अब खुद ही बताओ तुम कैसी हो। 2
बहुत सुंदर प्रिय..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रिय..
जवाब देंहटाएंBahut bahut dhanyabad sir
हटाएंBahut hi pyara
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत 🌸🌸🌸
जवाब देंहटाएंthanks
हटाएंBindass virendra
जवाब देंहटाएंthanks
हटाएंBhut ki khubsurat kavita .......👌👌
जवाब देंहटाएंBahut sahi mitra
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