बांध वृषभ नदिया के तीरे, पैर पसार विचारन लागे,
किस विधि बीती चैत महीना, गेहूं खेत पाकन लागे।
होती यदि साथ संगिनी, काम सुगम वह कर देती,
वट वृक्ष के नीचे होता मेरा आसन, काम सुगम वह कर देती।
तर तन हो जाता पसीने से, आंचल से बेना कर देती,
बिठा अपने झूलनी के नीचे, सूरज की अकड़ तोड़ देती।
बैठ वृक्ष की अर्ध छाया में, अपने हाथों से भोजन करा देती,
यदि लगा होता जूठन हाथों में, लट झटक के पीछे कर लेती।
देख निर्जीव खेत का रक्षक, मन में यह सपने सजाए,
घट पलट जाए घुंघट उल्टे, दर्शन से तृप्त मन हो जाए।
दिन दूर नहीं अब वह पल मिलन का, चुपके से बतला देती,
है भ्रमित पथ पर पथिक अकेला, भवसागर पार करा देती।
- वीरेंद्र प्रताप वर्मा
Wahh kya bat h adabhut
जवाब देंहटाएंDhanyabad
हटाएंक्या आप बिहार से है ?
जवाब देंहटाएंNhi उत्तर प्रदेश से है
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